शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

फर्क समझिए शहीद और हुतात्मा के बीच का ।

भय सिर्फ यवनों की दासता का नहीं, भय उनकी सांस्कृतिक दासता का भी  है । 

चाणक्य का यह वाक्य (सिरियल से) इसलिए याद आया कि हम हमारे हुतात्माओं को शहीद कहने लगे । बात समझमें न आई हो तो समझिए शहीद क्या होता है । 

इसके लिए आप को तीन ऐसे लिंक्स दूँगा जिसका काट देने की कोई मुसलमान हिम्मत नहीं कर सकता । इनमें शहीद की व्याख्या की गई है । 
  1. http://www.albalagh.net/qa/shaheed.shtml 
  2. http://www.quran-islam.org/main_topics/misinterpreted_verses/shaheed_(P1229).html
  3. https://www.2600.com/news/mirrors/harkatmujahideen/www.harkatulmujahideen.org/jihad/t-shahed.htm
सब से पहली लिंक है मुफ़्ती तकी उसमानी साहब की , जो कराची स्थित दर उल उलूम में फिकह और हदीथ के अध्येता हैं।इंग्लिश, अरबी और उर्दू में 66 किताबें उनके नाम पर हैं और अधिकारी व्यक्ति हैं जिनका संदर्भ गंभीरता से लिया जाये । देखते हैं वे क्या कहते हैं शहीद के बारे में :
Shaheed in the real sense is a Muslim who has been killed during "Jihad" or has been killed by any person unjustly. Such a person has two characteristics different from common people who die on their bed. Firstly, he should be buried without giving him a ritual bath. However, the prayer of the Janazah shall be offered on him and he shall also be given a proper kafin (burial shroud). Secondly, he will deserve a great reward in the Hereafter and it is hoped that Allah Almighty shall forgive his sins and admit him to Jannah. It is also stated in some of the traditions that the body of such a person remains in the grave protected from contamination or dissolution. 
 सही मायने में शहीद वो मुसलमान होगा जो जिहाद करते कत्ल होगा या जिसकी अन्याय हत्या हुई होगी । आम आदमी की सामान्य मौत से इसके दो अलग लक्षण होंगे । पहली बात यह है कि उसे गुसल के बिना ही दफनाया जाएगा लेकिन जनाजे की नमाज अता की जाएगी तथा उसे एक सही कफन ओढा जाएगा।  दूसरी बात यह है कि वो (दूसरी दुनिया) में बड़े इनाम का हकदार होगा तथा यह उम्मीद है कि अल्लाह तआला उसके गुनाह माफ करके उसे जन्नत में आने की इजाजत देगा । कुछ जगहों में यह भी कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति का शव सुरक्षित रहता है, उसमें सड़न नहीं होती । 
यह बात मजेदार है, सडन न होनेवाली । जिनको भी ये शहीद कहते आए हैं,  जरा देखो तो उनकी लाशों का क्या हाल है ? कीड़े केंचुओं ने खा कर खाक में मिला दिया होगा तो शहादत कैन्सल हो जानी चाहिए, नहीं?  इस लेख के अंत में मुफ़्ती साहब ये कहते हैं 
It is evident from the above discussion that the word "Shaheed" can only be used for a Muslim and cannot be applied to a non-Muslim at all. Similarly, the term cannot be used for a person who has been rightly killed as a punishment of his own offence.
इस चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि यह शब्द "शहीद " केवल एक मुसलमान के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है और गैर मुस्लिम के लिए कतई नहीं प्रयुक्त किया जा सकता । इसी तरह से, यह संज्ञा किसी ऐसे (मुस्लिम) व्यक्ति के लिए भी नहीं प्रयुक्त किया जा सकती जिसे अपने गुनाहों के लिए न्यायोचित मृत्युदंड दिया गया हो । 
मुफ़्ती तकी उस्मानी साहब  की बात को गौर से देखें । "Shaheed in the real sense is a Muslim who has been killed during "Jihad" or has been killed by any person unjustly. याने सही मायने में शहीद वो मुसलमान होगा जो जिहाद करते कत्ल होगा या जिसकी अन्याय हत्या हुई होगी । "

अब जिहाद करते कत्ल क्यूँ होगा अगर जिहाद केवल भाई से भाई को मिलाने की बात हो या केवल आत्मोन्नति वाला जिहाद हो (Jihad al Nafs) जैसे कि हमें बताया जाता है जब हम जिहादी को आतंकी कहते हैं ? भारत में काफिरों ने कभी कोई संत को नहीं मारा, हाँ, मोमिनों द्वारा सच के राह में जो लोग नहीं आए उनको लाते लाते वे मर गए उसमें मोमीन बेकसूर ही हैं, क्या नहीं ? मुसलमान पर कोई भी आरोप लगता है तो उसके बचाव में खड़े होनेवाले अपनी बात की शुरुवात ही "मासूम मुसलमान" से करते हैं ! 

बात यह भी है कि मुफ़्ती साहब पाकिस्तान में रहते हैं, वहाँ हिन्दू सत्ता में नहीं । जहां काफिरों के देश में रहना नहीं है वहाँ मुसलमान खुल कर बोलता है । भारत या अमेरिका में रहनेवाले किसी मुसलमान से ये मुफ़्ती साहब ज्यादा ईमानदार हैं इस्लाम को ले कर । उसी वाक्य के  आखरी हिस्से में वे कहते हैं कि वो मुसलमान भी शहीद है जिसकी अन्याय हत्या हुई होगी । 

न्याय क्या, अन्याय क्या ? जब केस दर्ज होती है तो उन्हें भारत की न्यायव्यवस्था और भारत के संविधान में विश्वास होता है । और अगर फैसला विरोध में आए तो judicial killing ? किसी को फुर्सत नहीं और किसी के पास उतना धन भी नहीं इसलिए इनकी गर्जनाएँ चलती है कि यह कानून को हम कानून ही नहीं मानते । हमारे लिए कुरान / शरिया  ही कानून है । याने ये अपने शहीद की कैटेगरी स्पष्ट करें । जिन्हें सरकार ने मृत्युदंड दिया है उन्हें ये शहीद कह रहे हैं,  तो क्या उनके साथ जो हुआ वो न्याय नहीं था या फिर उनपर जो आरोप हैं वे काम इस्लाम में जायज और बिलकुल करने योग्य हैं ?  इतने सबूत और साबितीयों के बाद यह तो मानना मुमकिन नहीं कि आरोप ही झूठे थे । 

भारत के स्वातंत्र्ययोद्धाओं के साथ इनकी तुलना नहीं हो सकती । देशज जन और देशज सत्ता से आप इस देश को इस्लाम के लिए काबीज नहीं कर सकते,  ना ही ऐसे गतिविधियों को आजादी की जंग का नाम दे सकते हैं । इसमें अगर कुछ उजागर होता है तो जिहाद का असली चेहरा ही । 

मुफ़्ती उस्मानी साहब की दूसरी बात को देखते हैं - 
  1. इस चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि यह शब्द "शहीद " केवल एक मुसलमान के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है और गैर मुस्लिम के लिए कतई नहीं प्रयुक्त किया जा सकता ।
  2. इसी तरह से, यह संज्ञा किसी ऐसे (मुस्लिम) व्यक्ति के लिए भी नहीं प्रयुक्त किया जा सकती जिसे अपने गुनाहों के लिए न्यायोचित मृत्युदंड दिया गया हो । 
क्र 1 की ही बात करेंगे, क्योंकि इसके पहले परिच्छेद में क्र 2 की बात कर चुके हैं ।  मुफ़्ती साहब साफ कहा रहे हैं कि "यह शब्द "शहीद " केवल एक मुसलमान के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है और गैर मुस्लिम के लिए कतई नहीं प्रयुक्त किया जा सकता ।"  मतलब हम अगर हमारे वीरों को शहीद कहते हैं तो गलत है क्योंकि वे मुसलमान नहीं हैं ।  तो अब सवाल यह है कि क्या भारत के ये आज के मुसलमान की नजर में अब्दुल हमीद शहीद है या नहीं ? पाकिस्तान से लड़ते मारा गया था, पाकिस्तानियों के हाथों । याने इस्लाम और अल्लाह के लिए सरजमीं  ए हिन्द को फतेह करने निकले गाजियों ये मुसलमान ने अपने काफिर आकाओं से वफादारी दिखाकर गाजियों को मारा था । वे पाकिस्तानी तो इस्लाम की फतेह के लिए मारे गए तो ऑटोमैटिक शहीद हो गए, लेकिन ये काफिरों के लिए गाजियों से लड़ते अब्दुल हमीद को मुसलमान शहीद मानेंगे या नहीं ? 

सवाल यही है कि क्या भारत का मुसलमान पाकिस्तानी सैनिकों को इस देश के हमलावर मानता है या अपने दस्तगीर (हाथ बढ़ाकर मदद करनेवाला) ?  आज काफी पानी बह चुका है और खून भी पानी की ही तरह बह चुका है । आज केवल self attested देशनिष्ठा पर भरोसा करने को डर लगता है । 

सूरह 5:53 से 5:55 को संदर्भों के साथ देखें तो यह हिदायत है कि अगर गलत लोगों को अपने से दूर न रखा जाये और अपने साथ घुलने दिया जाये तो गेहूं के साथ घुन को पीसना ही है । 

बात हम शहीदों की कर रहे थे , और शहीद की व्याख्या कर दी गई है । 

तो हमारे वीर शहीद कब से होने लगे? 

पोस्ट के शुरुवात में मैंने चाणक्य सिरियल के एक वाक्य से की थी - भय सिर्फ यवनों की दासता का नहीं, भय उनकी सांस्कृतिक दासता का भी  है ।  उसी के आगे चाणक्य यह भी कहता है कि - अनुभव कहता है कि पराजित राष्ट्र और पराजित मन प्राय: विजेताओं के संस्कार और संस्कृति को स्वीकार करते हैं । सेकड़ों सालों की इस्लामी हुकूमत से हिन्दू राज्यों की राजभाषा में भी उर्दू और फारसी शब्द प्रचुरता से पाये जाते हैं । वैसे हम शहीद कब से कहने लगे इसका इतिहास थोड़े ही किसी ने लिख रखा है ? कह दिया किसी ने शहीद,  लग गए हम भी शहीद कहने । 1948 में फिल्म आई थी 'शहीद' जिसका अमर गाना 'वतन के राह में वतन के नौजवाँ शहीद हो' आज भी सभी के जुबान पर है । उसके बाद दूसरी भी शहीद आ  गयी,  और यही शब्द दृढ़ हो गया, किसी को कुछ अलग से सोचने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई । 

आज मुसलमानों ने हमें थप्पड़ मार कर जगाया है कि शहीद तो अफजल गुरु है, याक़ूब मेमन है, इशरत जहां है ।तब जा कर ये सोचना पड़ा कि आखिर शहीद होता क्या है और तब ही समझ में आया कि इसको ले कर मुसलमान तो स्पष्ट ही हैं कि एक मुसलमान ही शहीद कहला सकता है - क्यूँ और कब यह भी हम देख चुके । तो हमें भी यह सोचना चाहिए कि हमारे वीर क्या थे, उनको किस शब्द से सम्मानित किया जाये । 

हुतात्मा  -  यह  शब्द हमारे पास पहले से है, आज का नहीं है । बस हम भूल गए थे या यूँ  कहें कि शहीद कहने में हमें शहद की मिठास महसूस होती थी । लेकिन अब शहद चट गया, अब जहर की कड़वाहट  भी समझ आने लगी  है । 

जर्मन शेफर्ड जानते हैं आप ? अल्सेशियन भी कहलाता है । जी, कुत्ते की ही बात कर रहा हूँ । कोई कहते हैं कि भेड़िये सा दिखता है । नहीं, फर्क होता है । शक्ल में भी फर्क है और फितरत में तो बहुत ही । स्वामी के लिए जान भी देने से कतराता नहीं । भेड़िये में ऐसे गुण नहीं होते । उसकी वफादारी उसकी टोली से या कहो कि उसके कबीले से होती है । उम्मत भी कहना चाहें तो मुझे तो एतराज नहीं । 

कुत्ते में एक और भी गुण होता है । अपने मालिक के दुश्मन को मालिक से पहले पहचान जाता है । चोर या चीजें उठानेवालों को भी कुत्ता छोड़ता नहीं । मालिक से वफादार रहता है,  अपरिचित के हाथों से खाएगा नहीं । 

अगर आप को पता न हो तो बता दूँ,  इस्लाम में घर में कुत्ते पालना मना है । हिकारत से किसी को कुत्ता कहकर गाली देना यह भी हमारे लिए विजेताओं का स्वीकृत संस्कार है । 

लंबी हो गई पोस्ट । पूरी पढ़ने के लिए शुक्रिया । लगता है कि शहीद और हुतात्मा के बीच का फर्क आप को स्पष्ट समझ में आया होगा । यह चित्र स्पष्ट कर देगा ।